कुछ रिश्ते थे जो छूट गए, कुछ अपने थे जो रूठ गए,
कुछ गैरों ने था साथ दिया, कुछ अपने थे वो छूट गए।
कभी चलते थे अर्श पर, कभी गिरे भी हम फ़र्श पर,
कुछ गैरों ने था थाम लिया, कुछ अपने हमें भूल गए।
जब चलते चलते थक गए, कुछ देर जब हम रुक गए,
दिखने लगे वो काम हमें, जिन्हें पूरा करने से हम चूक गए।
याद आते हैं वो दिन, जब लिखते थे और गाते थे,
ज़िम्मेदारियाँ पड़ी इतनी, पूरा करते खुद को भूल गए।
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